Bihar News: एक हजार का लिया कर्ज और खड़ी कर दी 900 करोड़ की बिहारी कंपनी, जानिए कौन है वह बिहारी?

Bihar News: एक हजार का लिया कर्ज और खड़ी कर दी 900 करोड़  की बिहारी कंपनी, जानिए कौन है वह बिहारी?

हेलो, नमस्ते,  प्रणाम, सलाम वेलकम टू जन संवाद बिहार! साल 2001 एक युवक ने 1000 का कर्ज लिया और आज यानी कि सिर्फ 24 सालों में 1000 रुपया से 900 करोड़ की कंपनी खड़ी कर दी। इसीलिए तो सब कहते हैं कि एक बिहारी  सब पर भारी।  जी हां आज हम आपको बिहार के एक ऐसे कारोबारी के बारे में बता रहे हैं, जिन्होंने गरीबी को अपने सपने में आड़े आने नहीं दिया और आज 900 करोड़ की टर्नओवर वाली कंपनी खड़ी कर दी।  आज वह 4000 लोगों को नौकरी देकर उनका घर भी चला रहे हैं।  इसलिए यह आर्टिकल आपके लिए बेहद खास होने वाला है इसे अंत तक जरूर पढ़ें।

गरीबी में जन्म संघर्षों की कठोर और कांटों भरी राह हर मोड़ पर असफलताओं की चुनौती ने अजय कुमार सिंह को आज एक अलग मुकाम पर पहुंचा दिया है।  कभी पुलिस बैरकों में जमीन पर सोने वाले अजय ने मजदूरी की।  बिना वेतन की नौकरी की और ठोकर खाई। लेकिन उनका हौसला कभी नहीं टूटा इसी दौरान 1000 रुपया से शुरू किया गया बिजनेस का सफर आज 800 से 900 करोड़ के टर्नओवर तक पहुंच चुका है।  बिहार में फैक्ट्रियां लगाने के उनके सपने ने हजारों लोगों को रोजगार दिया और साबित कर दिया कि सच्ची मेहनत और जिद के आगे कोई भी बाधा टिक नहीं सकती।

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1000 रुपये कर्ज लेकर शुरू किया था काम

अजय कुमार सिंह का बचपन गरीबी और संघर्षों से भरा था।  उनका जन्म एक साधारण परिवार में हुआ जहां आर्थिक तंगी हमेशा बनी रहती थी।  गांव में उनका घर खपड़े का था और उनकी पारिवारिक स्थिति बीपीएल श्रेणी में आती थी लेकिन उनके इरादे मजबूत थे।  अजय ने अपनी शुरुआती पढ़ाई बखोरापुर मिडिल स्कूल से की और फिर हाई स्कूल बरहपुर से  10वीं पास की।  इंटरमीडिएट और ग्रेजुएशन की पढ़ाई भोजपुर के प्रतिष्ठित महाराजा कॉलेज आर्ट्स से 1979 से 1994 के बीच पूरी की। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति ने उन्हें भी मजदूर बना दिया।  1992 में मजबूरी में उन्हें दरभंगा उनके बाबूजी के पास भेज दिया गया। पिता पुलिस कांस्टेबल थे लेकिन सैलरी इतनी कम थी कि उसे घर चलाना भी मुश्किल था। 1995 में जब पिता का तबादला रांची हुआ तो अजय भी उनके साथ वहां चले गए लेकिन हालात नहीं बदले।  वह अब भी पुलिस बैरक में ही रहते और रोज बाबूजी की डांट फटकार सुनते ।  अजय ने ग्रेजुएशन तो कर लिया था लेकिन नौकरी नहीं की आखिरकार घर के दबाव में उन्होंने मजदूरी करनी शुरू कर दी।  रोज 40 ₹ मिलते थे लेकिन यह काम सिर्फ तीन महीने ही चला।  मजदूरी के अनुभव ने अजय को सिखा दिया कि मेहनत से कमाए गए पैसे का कितना महत्व है?  इसके बाद उन्होंने खुद कुछ करने की ठानी।  उन्होंने मोटर व्हीकल एक्ट के तहत गाड़ियों की हेडलाइट के ऊपरी हिस्से को काला करने का काम शुरू किया यह काम एसपी की अनुमति से होता था और हर गाड़ी से उन्हें ₹10 मिलते थे।  धीरे-धीरे यह काम बढ़ता गया और अजय को इसमें सफलता मिलने लगी, हालांकि यह काम ज्यादा दिन तक नहीं चल पाया।  अजय चंद पैसों के लिए दिनदिन भर की मजदूरी से थक गए थे।  जिसके बाद साल 2001 में अजय ने महज ₹1000  की पूंजी से अपना खुद का बिजनेस शुरू किया।  यही उनके जीवन का सबसे बड़ा टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।

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कहते हैं ना कि मेहनत करने वाले का भगवान भी साथ देता है। कुछ ऐसा ही हुआ और संयोग से उसी साल अजय की जान पहचान एक बीएसएनएल अधिकारी एसडीई  एम के सिन्हा से हुई।  जिन्होंने उन्हें 20000 का ऑप्टिकल फाइबर केबल बिछाने का ठेका दिया।  हालांकि इस ठेके को पूरा करने के लिए भी उनके पास 1000 रुपया  की जरूरत थी जो उनके पास नहीं थे। तब मां ने एक पुलिस कर्मी राम अयोध्या शुक्ला की पत्नी से पैसा उधार लिया।  जिसे अजय भाभी कहा करते थे। अजय ने इस पैसे से काम शुरू किया और जैसे ही उन्हें इस काम की पेमेंट मिली उन्होंने सबसे पहले भाभी का उधार चुकाया।  पहले ठेके से मिले अनुभव ने अजय को आगे बढ़ने का हौसला दिया।  उन्होंने अपने नाम से टेंडर भरना शुरू किया और छोटे-छोटे प्रोजेक्ट्स लेते रहे।  धीरे-धीरे उनका काम बढ़ता गया और उन्होंने टेलीकॉम सेक्टर में अपनी पहचान बना ली।  2012 में उन्होंने अपनी खुद की प्राइवेट लिमिटेड कंपनी, सिंह इंफ्राटेल प्राइवेट लिमिटेड की स्थापना की।  आज Jio, Airtel जैसे कंपनियां भी इनके क्लाइंट है और पूरे बिहार में जिओ फाइबर केबल बिछाने का काम अजय के ही कंपनी को मिला था। इसके बाद अजय ने दूसरे सेक्टर में भी पाँव जमाना शुरू किया।

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अजय बताते है 2017 में मेरी मुलाकात अमीषा पटेल से एक कार्यक्रम के दौरान हुई। उस कार्यक्रम के दौरान उनका मोबाईल टूट गया था। जिसके बाद हमारी बात उनसे शुरू हुई। मैंने उन्हे उसी दिन उन्हे नया आईफोन 8 खरीद कर गिफ्ट किया। धीरे धीरे बात आगे बढ़ती गई नवंबर 2017 में ही ₹ 20  लाख अमीशा पटेल को दिया था।  अजय बताते हैं अमीशा से फिल्म बनाने को लेकर बातचीत हुई।  उन्होंने बताया कि हम एक देसी मैजिक करके फिल्म बना रहे हैं।  फिल्म प्रोडक्शन के लिए दो करोड़ रुपए लगेंगे अगर कोई हमें ₹ करोड़ दे दे तो हम प्रोडक्शन में उनका नाम भी दे देंगे।  अजय ने पैसे दे दिए लेकिन उन्हें यहां धोखा मिला और उन्हें अमीशा पटेल से अपने पैसे वापस लेने के लिए कोर्ट के चक्कर भी लगाने पड़े।  हालांकि अजय ने हार नहीं मानी और फिल्म प्रोडक्शन में भी आखिर झंडा गाड़ ही दिया।

आज चार कंपनियों के है मालिक 

अभी अजय की चार कंपनियां रजिस्टर्ड हैं लवली वर्ल्ड एंटरटेनमेंट प्राइवेट लिमिटेड, सिंह इंफ्राटेल, भारत प्लस एथेनॉल प्राइवेट लिमिटेड और भारत प्लस इंडस्ट्री प्राइवेट लिमिटेड है । सभी कंपनियों का मिलाकर अभी सालाना टर्नओवर 800 से लेकर 900 करोड़ के बीच है।  इन सभी कंपनियों में करीब 4000 लोग काम कर रहे हैं जिसमें 95 प्रतिशत लोग बिहार से हैं।  अजय ने बिहार में अपने कारोबार की शुरुआत को लेकर बताया कि 15 जून 2021 को पटना में हमारी मुलाकात शाहनवाज हुसैन से हुई । पहली ही बातचीत में उन्होंने प्रभावित कर दिया।  बिना किसी औपचारिक परिचय के हमने उद्योग लगाने की इच्छा जाहिर की।  यह सुनते ही शाहनवाज जी ने तुरंत अपने सचिव को फोन किया और सभी प्राथमिक अनुमति एक ही दिन में दिलवा दी।  इस तरह बक्सर के नवानगर में बियाड़ा की जमीन पर 2250 करोड़ की लागत से इथेनॉल प्लांट लगाया।  मार्च 2024 में इथेनॉल प्लांट से उत्पादन शुरू हो गया है।  प्लांट में करीब 500 लोग काम कर रहे हैं।  इसके बाद अजय ने नवानगर में ही co2 प्लांट, जिसकी लागत 20 करोड़ है।  उसना राइस मिल जिसकी लागत ₹70  करोड़ है,  राइस ब्रांड सॉल्वेंट प्लांट और रिफाइनरी जिसकी लागत 90 करोड़ है इन यूनिट की स्थापना की।  co2 प्लांट की उत्पादन क्षमता 16 टन प्रति घंटा है जबकि राइस ब्रांड सिल्वेंट प्लांट और रिफाइनरी से खाद्य तेल उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा।  इसके अलावा उन्होंने बेहटा इंडस्ट्रियल एरिया में 3 एकड़ जमीन पर 100 टन प्रतिदिन की क्षमता वाली फ्लोर में लगाने की योजना बनाई।  जिसकी कुल लागत 70 करोड़  है इस परियोजना का निर्माण कार्य जारी है और मार्च 2026 तक इसका उत्पादन शुरू होने की उम्मीद है।  अजय ने आगे का प्लान बताते हुए कहा हम आने वाले दिनों में कई योजनाओं पर काम कर रहे हैं मेरा सपना है कि बिहार में मोटर उद्योग ले आऊं बिहार को मोटर उद्योग की बहुत ज्यादा जरूरत है।  झारखंड में जैसे टाटा है उसके चलते पूरा एक टाटा शहर बस गया।  उसके आसपास लगभग 50 से 100 फैक्ट्रियां लग जाती हैं तभी जाकर एक बड़ी इंडस्ट्री खड़ी होती है।  हमने बिहार में इथेनॉल की फैक्ट्री लगाई तो किसानों को काफी फायदा हुआ जो मक्का ₹10 में बिकता था आज24 ₹ में बिक रहा है।  उन्होंने बताया मैं जहां भी गया मुंबई दिल्ली चाहे कोई और राज्य हो वहां बिहारी को एक अलग दृष्टि से देखा जाता है।  हमें लोग मजदूर समझते हैं जबकि मुझे बिहारी होने पर प्राउड होता है।

बिहारी होने पर करते है गर्व 

मैं महाराष्ट्र में जाकर अपना परचम लहरा सकता हूं लेकिन कोई मराठी बिहार में आकर अपना परचम नहीं लहरा सकता है।  अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया तो इसे लाइक करें शेयर करें कमेंट करें और अपने दोस्तों से जन संवाद न्यूज पोर्टल, आपकी खबर आपकी आवाज के बारे में चर्चा करें।
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